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युवाओं के जागने और जगाने का वर्ष

युवा संवाद -  जनवरी 2018 अंक में प्रकाशित

वर्ष 2017 ने देश और दुनिया के समक्ष नाभिकीय युद्ध से लेकर सांप्रदायिक संघर्ष और सभ्यताओं के संघर्ष जैसी गंभीर चुनौतियां प्रस्तुत की हैं तो आने वाला वर्ष 2018 उनसे निपटने में बीतना चाहिए। अगर देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी रैलियों के माध्यम से समाज का धु्रवीकरण करने में लगे रहे तो विश्व के पटल पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी श्रेष्ठता का आह्वान करके पूरी दुनिया में तनाव पैदा कर रहे हैं। ट्रंप ने पहले यरुशलम और फिर राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के माध्यम से पश्चिम एशिया को भड़काया फिर रूस और चीन को चुनौती देते हुए टकराव की नई इबारत लिखी। अमेरिका कृत्रिम विवेक और जीन कोडिंग को आधार बनाकर अपनी श्रेष्ठता की नई कथा लिखना चाहता है जो मानव समाज के लिए बड़ी चुनौती है। गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की फीकी जीत जिन शर्तों पर हुई है वह न तो इस समाज के लिए आश्वस्ति देने वाली हैं और न ही लोकतंत्र के लिए। निश्चित तौर पर हर पार्टी चुनाव जीतने के लिए ही लड़ती है लेकिन किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने की दलील लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा पैदा कर रही है। उधर कांग्रेस पार्टी की सीटों और जनाधार में बढ़ोतरी अगर राहुल गांधी के मंदिर-मंदिर जाने से हुई है तो उसे भी अच्छा नहीं कहा जा सकता। सांप्रदायिक और ध्रुवीकृत राजनीति का विकल्प धार्मिक होते जाना नहीं है बल्कि वैज्ञानिक और सेक्यूलर सोच की स्थापना ही है।

 

यहां एक ही उम्मीद है कि कांग्रेस पार्टी के नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने संकल्प लिया है कि वे नफरत और आक्रामक भाषा का जवाब प्रेम और मीठी वाणी से देंगे। हालांकि उन्हीं की पार्टी के नेता उसका पालन नहीं कर सके और फिर पाकिस्तान और मुसलमानों के बहाने तैयार अफवाहों और निराधार आरोपों के आधार पर प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार चलाया। गुजरात में जो भी उम्मीद बनी है वह वहां राहुल गांधी का साथ देने वाले तीन युवा नेताओं हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी की सक्रियता  के कारण। लेकिन इनमें जिग्नेश मेवाणीको छोड़ दें तो बाकी दो की सोच परिपक्व नहीं लगती। विशेषकर भाजपा का विरोध करते हुए भी हार्दिक पटेल उन्हीं मूल्यों और सिद्धांतों की बात करते हैं जिससे देश और समाज को खतरा है। इस तीव्र होती राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से एक ही उम्मीद है और वो है उदार हिंदू बनाम कट्टर हिंदू के बीच संघर्ष तेज होने की। इस बीच एक ही बार में दिए जाने वाले तीन तलाक को रद्द करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के स्वागतयोग्य फैसले पर सरकार मुस्लिम समाज में आमराय बनाने के बजाय उसे विभाजित करने की कोशिश कर रही है। तीन तलाक खत्म होना चाहिए और मुस्लिम समाज के कट्टरपंथियों को यह बात समझनी चाहिए कि यह उन्हीं के हित में है क्योंकि दुनिया के तमाम इस्लामी देशों में भी वह प्रथा प्रतिबंधित है।

 

इस मुद्दे पर उभरते द्वंद्व के बीच युवाओं को इस्लाम की उदार परंपरा का ही साथ देना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि व्यापक मुस्लिम समाज इसमें साथ दे। धार्मिक और जातीय सवालों से ज्यादा बड़ा सवाल आर्थिक है और उसे किसी भी कीमत पर युवाओं की निगाह से ओझल नहीं होने देना है। कथित अच्छे दिनों की आस में युवाओं को उस प्रश्न से भटकाकर रखा गया है और कभी राष्ट्रवाद तो कभी हिंदू राष्ट्र के हितों को आगे करके उन्हें रिझाया गया है।

सन 2018 में यह स्पष्ट होने जा रहा है कि इस व्यवस्था और उसकी आर्थिक नीतियों में न तो रोजगार के साथ विकास की गुंजाइश है और न ही किसानों की आमदनी दोगुनी करने

का कार्यक्रम। विडंबना देखिए कि नोटबंदी और जीएसटी से होने वाली परेशानी से घबराई सरकार जीडीपी के आंकड़ों के साथ घपला कर रही है। इस बात को भाजपा के ही सांसद डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भारतीय सांख्यिकी विभाग के अधिकारियों को हिदायत देते हुए उजागर किया है। युवाओं के लिए जरूरी है कि वे इतिहास और मिथक के बारे में संतुलित राय तो बनाएं ही लेकिन उससे पहले देश की आर्थिक स्थिति के बारे में सही जानकारी और सोच विकसित करें ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो और देश मजबूत बने। युवाओं के लिए अनिवार्य है कि वे इतिहास और मिथकों को मिलाने और इतिहास को मिथक और मिथक को इतिहास बनाने की प्रवृत्ति से बचें और वैज्ञानिक सोच का विकास करें ताकि पद्मिनी जैसी फिल्म के बहाने रचनात्मक स्वतंत्रता पर नियंत्रण न कायम हो।

 

युवाओं के लिए विशेष तौर पर जरूरी है अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा का संकल्प लेना। वह हमारे संविधान और लोकतंत्र की आत्मा है और उस पर गैर संवैधानिक ताकतों द्वारा घातक हमला किया जा रहा है। अगर पहले के वर्षों में अभिव्यक्ति के अधिकार को कुचलने के लिए दाभोलकर, पंसारे और कलिबुर्गी की हत्याएं की गईं तो 2017 में पत्रकार गौरी लंकेश को मार डाला गया। आज युवाओं के लिए आवश्यक है कि वे पोस्ट ट्रुथ के सिद्धांत पर चल रहे फेसबुक, व्हाटस एप और ट्विटर के विश्वविद्यालयों से प्रशिक्षित होने के बजाय ज्ञान की स्वयं खोज करें और अपने इतिहास, पुरखों और नायकों का ऐसा आख्यान पैदा करें जिससे सच तो सामने आए ही और असत्य और कटुता का अंधेरा छंटे। इस साल युवाओं के सामने संघर्ष और रचना की गंभीर चुनौती उपस्थित है और अगर वे उसे संभालने से कतराएंगे तो न तो उन्हें संविधान के दायरे में प्राप्त लोकतंत्र का खुला आकाश मिलेगा और न ही अमन और दोस्ती की ओर बढ़ती दुनिया।

 

वर्ष 2018 जागने और जगाने का वर्ष है क्योंकि एक साल बाद हम उस महापुरुष की डेढ़  सौवीं जयंती मनाने जा रहे हैं जिसने बीसवीं सदी में सत्य और अहिंसा की ज्योति जलाई और इस राष्ट्र और मानवता को एकजुट रखने के लिए बलिदान दिया। इसलिए इस वर्ष हम अपनी चेतना को उस स्तर तक ले जाएं कि अगले वर्ष गांधी की स्मृतियों का सामना कर सकें।