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रसातल में अर्थव्यवस्था
युवा संवाद - सितंबर 2019 अंक में प्रकाशित
राजनीति और अर्थशास्त्र में एक बड़ा अंतर है। अर्थशास्त्र में 2 और 2 मिलकर 4 होते हैं, जबकि राजनीति में पुराने 2 में नया 2 मिलानेसे नया शून्य भी पैदा हो सकता है। मिसाल के तौर पर, बालाकोटहोने से पुलवामा शून्य हो गया। 370 हटने से उन्नाव कांड याद नहींरहा। लेकिन अर्थशास्त्र गणित पर टिका है। इसमें सब कुछ जुड़तारहता है...
यह जो बिहार है : राजनीतिक कलाबाजों में फंसा — डाॅ- योगेन्द्र
जम्मू-कश्मीर : कश्मीरियत के मर्म पर चोट — वजाहत हबीबुल्लाह
जम्मू-कश्मीर : सरकार का फैसला: कुछ — प्रेम सिंह
देश : मैं देश नहीं मिटने दूंगा — संदीप पाण्डेय, संजय सिंह
जम्मू-कश्मीर : कश्मीर और संघ का वैचारिक... — जवरीमल पारख
अनुच्छेद 370 : इतिहास के आइने में — अशोक कुमार पाण्डेय
सूचना का अधिकार : अपारदर्शी तरीके से पारदर्शिता... — रोली शिवहरे
मॉब लिचिंग : पहलू, पुलिस और जज — अजित साही
समाजवादी : वर्तमान चुनौतियां और ... — प्रो. आनंद कुमार
इस्लाम : अपराधीकरण न तो इस्लामिक... — फैजान मुस्तफा
अगस्त क्रांति : भारत छोड़ो आंदोलन — प्रेम सिंह
हवाई यातायात : बढ़ते हवाई यातायात से ... — डॉ. ओ.पी. जोशी
जल संकट : नादानी और बेईमानी से खत्म... — पवन नागर
निजीकरण : संकट में रेल — संदीप पाण्डेय, रामकृष्ण राजू
हिन्दू-मुस्लिम : मुसलमानों ने मंदिर बनवाए तो... — गोविंद पंत राजू
चर्चा : आर.एस.एस. एवं डॉ. अंबेडकर — राजेंद्र कुमार यादव
बेबाक : पूरे देश में जश्न का माहौल है... — सहीराम