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अंक के प्रमुख आकर्षण

अगस्त 2017

संपादकीय

जनविरोधी नीतियों के पैरोकार

युवा संवाद - अगस्त 2017 अंक में प्रकाशित

 

जीएसटी के बारे में प्रधानमंत्री जितनी बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं, वह उतना ही रहस्यमय, एक अबूझ पहेली की शक्ल लेता जा रहा है। ‘एक देश, एक कर’ - जिस बात पर संसद में आधी रात को भूतों की तरह का जश्न मनाया गया, अब यह साफ हो चुका है कि इस बात का इस पूरे फसाने में कोई स्थान ही नहीं है। इसमें न एक राष्ट्र है और न एक कर ही।...

 

आगे पढ़े...

यह जो बिहार है : जनता सब देख रही है नीतिश बाबू ! — डाॅ. योगेंद्र

इतिहास : गांधी से पहले — राम मनोहर लोहिया

राष्ट्रपति चुनाव : सर्वोच्च पद के लिए ‘अनुकूलित... — ऊर्मिलेश

सत्याग्रह शताब्दी : सत्याग्रह के प्रयोग को भूलता... — कश्मीर उप्पल

आधुनिकीकरण : नौकरियों पर मंडराते खतरे — मार्टिन खोर

हिमालय : ‘विकास’ यानी पागल दौड़ — राधा भट्ट

पर्यावरण : अनैतिक विकास का शिकार... — विनोद पांडेय

मौसम परिवर्तन : आपदाएं सहता बांग्लादेश — फैजल रहमान

जी.एम. सरसों : सरकार क्यों दे रही है इसे बढ़ावा ? — देविन्दर शर्मा

कृषि संकट : कुप्रबंधन की शिकार कृषि — देविन्दर शर्मा

जी.एम. फसलें : नाजुक दौर में है जी.एम फसलों... — भारत डोगरा

शिक्षा सम्मेलन : शिक्षा का अधिकार — प्रो. अनिल सद्गोपाल

हिन्दी पट्टी : हिंदी क्षेत्र की शैक्षिक-सांस्कृतिक... — असगर वजाहत

आंदोलन : डाॅ. प्रेमसिंह का सात दिवसीय... —युवा संवाद ब्यूरो

एक कवि : नित्यानंद गायेन की कविताएं

पुस्तक परिचय : सौ साल पहले: चंपारण का गांधी — अशोक भारत

सफाई मजदूर : अनैतिकता और बर्बरता के शिकार... — संजय जोठे

बेबाक : रंग में भंग — सहीराम