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फिर गर्त में कश्मीर
युवा संवाद - जुलाई 2018 अंक में प्रकाशित
‘कश्मीर पर बल द्वारा नहीं, केवल पुण्य द्वारा ही विजय पाई जा सकती है। यहां के निवासी केवल परलोक से भयभीत होते हैं, न कि शस्त्रधारियों से।’ बारहवीं शताब्दी के मध्य में प्रसिद्ध कश्मीरी कवि एवं इतिहासकार कल्हण द्वारा रचित संस्कृत ग्रंथ ‘राजतरंगिणी’ में कही गई बात कश्मीर की ताजा स्थिति के संदर्भ में भी पूरी तरह प्रासंगिक है...
यह जो बिहार है : शंबूक और सीता की पुनः परीक्षा — डॉ. योगेंद्र
बलात्कार : पितृसत्तात्मक शक्ति.सरंचना का.... — सुजाता
जम्मू.कश्मीर : फिरकापरस्तों का नहीं है मेरा.... — दीपिका सिंह राजावत
मोदी सरकार के 4 साल : दक्षिण पंथ की कीलें — जावेद अनीस
कट्टरपंथ : वापस बर्बरता की ओर — आनंद तेलतुम्बड़े
सहिष्णुता : वे हममें नफरत भर देना चाहते हैं — प्रकाश राज
संघ, भारत, लोकतंत्र : कौन जीतेगा इस लंबे... — अरुण कुमार त्रिपाठी
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ : राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति — सौरभ बाजपेयी
अध्ययन रिपोर्ट : कहानी पाचगांव की — डॉ. मुकेश कुमार
विभेदीकरण : लोकतंत्र का नया संस्सकरण — उपासना गौतम
फेक न्यूज़ : भीड़ में तब्दील होता समाज — असद शेख
बेबाक : ना कोई दाव चला ना धौंस चली — सहीराम