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अंक के प्रमुख आकर्षण
मई 2018
संपादकीय

यह जो बिहार है : हताशा में बिहार — डाॅ. योगेंद्र

टिप्पणी : आसिफा के न्यायप्रिय हत्यारे! — प्रो. प्रेमसिंह

सांप्रदायिकता : सांप्रदायिकता से लड़ने का हौसला — कृपाशंकर चैबे

समाज : काबा किस मुंह से जाओगे गोलिब — कुमार प्रशांत

जल संकट : अपने देश में भी ‘केपटाउन’ संभव है — राजकुमार कुंभज

प्रकृति : खतरे में पड़ी जैव विविधता — रविन्द्र गिन्नौरे

कैसा विकास : वनों के बिना विकास संभव नहीं — कुलभूषण उपमन्यु

उदारीकरण के 25 साल : शोषणकारी शक्तियों का कसता...

समाज और विज्ञान : वैज्ञानिकों की अवैज्ञानिकता — प्रदीप

स्मृति : रोहित वेमूला की याद — लाजपत राय

चिंतन : पाँच समस्याओं पर विवेकानंद... — हिमांशु शेखर

दस्तावेज : अछूत समस्या — भगत सिंह

अभाषी दुनिया : इंटरनेट की दुनिया — संजय शरमनजोथे

आसिफा की हत्या : बलात्कार और हत्या का समर्थन... — रवीश कुमार

बेबाक : यह आग क्या लगी है — सहीराम

शांतता कोर्ट चालू आहे

युवा संवाद - मई 2018 अंक में प्रकाशित

 

अगर हम देश की मौजूदा स्थिति पर नजर डालें तो लगेगा का विजय तेंदुलकर के नाटक ‘शांतता कोर्ट चालू आहे’ (खामोश अदालत जारी है) का मंचन हो रहा है। 1963 में लिखे गए इस नाटक का पहली बार 1971 में मंचन हुआ था। यह नाटक बताता है कि भारतीय समाज किस तरह से स्त्री विरोधी है...

 

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